पिपरा का खाजा,पिपरा का मिठाई का राजा है जानिए इसके बारे में
सुपौल के पिपरा के खाजा की चर्चा दूर तलक है। अपने विशिष्ट स्वाद के लिए जाना जाने वाला सिलाव का खाजा तो आपने खूब खाया होगा लेकिन सुपौल के पिपरा का खाजा भी ऐसा कि मिले तो बस खा जा वाली फीलिंग आयेगी ! देश की आजादी से पहले से यहां खाजा बनाने का काम चल रहा है ! स्व. गौनी साह ने सबसे पहले यहां जागुर से आकर खाजा बनाने का कारोबार शुरू किया था. स्व. गौनी साह को पिपरा के खाजा मिठाई का आविष्कारक माना जाता है. जब पिपरा बाजार के स्वरूप में नहीं था ! आजादी के पहले से इस खाजा को तैयार किया जा रहा है। उस वक्त एक छोटा सा हाट दुर्गा मंदिर के बगल में पीपल पेड़ के नीचे लगाता था ! उसी हाट पर स्व गेनी साह द्वारा शुद्ध घी का खाजा तैयार कर चार आने किलो बेचते थे !
वहीं वर्तमान समय में शुद्ध घी का खाजा 250 से 300 रुपये किलो बिक रहा है. अब नेपाल सहित पूर्णिया, बेगूसराय, खगड़िया तक के व्यापारी यहां से खाजा खरीद कर ले जाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक प्रतिदिन 10 क्विंटल से अधिक खाजा की बिक्री होती है. पर्वों के समय यह बिक्री डेढ़ गुना तक बढ़ जाती है.
पिपरा का खाजा, शुरू में गोल-गोल खाजा बनाया जाता था ,खाजा अब लंबाई पर फोकस
स्थानीय खाजा व्यवसायी बताते हैं कि शुरुआती दौर में गोल-गोल खाजा बनाया जाता था। उसकी विशेषता होती थी कि अगर खाजा पर चवन्नी (सिक्का ) भी गिर जाए तो धंस जाती थी। इतना सॉफ्ट खस्तादार होता था, बाद में लंबा खाजा बनाना शुरू हुआ और लोगों की मांग पर खाजा को कड़ा किया जाने लगा।
पिपरा का खाजा सिलाव की तरह प्रसिद्ध है
खाजा को लेकर जिस तरह सिलाव की प्रसिद्धि है वही प्रसिद्धि पिपरा के खाजा की भी है। सहरसा-वीरपुर एनएच के किनारे अवस्थित इस प्रखंड मुख्यालय होकर जो भी यात्री गुजरते हैं वह खाजा जरूर खरीदते हैं।
हाल ही में पुष्पं प्रिया चौधरी पिपरा आई थी उन्होंने जब पिपरा का खाजा खाया तो वो भी पिपरा का खाजा का तारीफ करने से खुद को नहीं रोक पाई, उन्होंने Twitter पर Post करते हुऐ लिखा की
यही मिठाई अगर यूरोप में होती तो बकलावा की तरह लगभग हर कैफ़े में नज़र आती। हजारों जॉब्स और लोकल इकॉनोमी का वरदान बनकर पिपरा की खाजा इंडस्ट्री नए दशक में बिहार की ग्लोबल पहचान बनेगी।
अपने विशिष्ट स्वाद व आकार को लेकर मशहुर पिपरा का खाजा की पहचान देश-विदेश में रही है. प्रगति मैदान से लेकर सोनपुर मेला या फिर पटना गांधी मैदान के सरस मेला में लगे पिपरा के खाजा के स्टॉल से इसकी स्वाद पूरे देश में फैली हुई है. साथ ही पड़ोसी देश नेपाल में भी इसकी मांग है. एनएच 106 व एनएच 327 ई क्रासिंग पर स्थित पिपरा बाजार की अर्थ व्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा खाजा मिठाई की बिक्री पर निर्भर करती है. सड़क से गुजरने पर लोग यहां का खाजा खरीदना व खाना पसंद करते हैं. खाजा बनाने वाले कारीगर से लेकर किराना दुकानदार तक की रोजी रोटी इससे जुड़ी हुई है।
दो सौ से अधिक लोगों को हो रहा रोजगार मुहैया
खाजा की बिक्री देखते हुए दिनानुदिन दुकान खुलती गई और अभी 50 के करीब दुकानें हैं। इन दुकानों से दो सौ से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है। शुद्ध घी और रिफाइन दोनों से खाजा तैयार किया जाता है। रिफाइन वाला खाजा 120 से 150 रुपये और घी का खाजा 250 से 300 रुपये प्रति किलो बिकता है।
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स्व. गौनी साह की पांचवीं पीढ़ी के व्यवसायी सुरेश साह के पिपरा का खाजा का प्रसिद्ध दुकानों में से एक माना गया हैं कश्मीर मिष्ठान भंडार
आपने भी पिपरा का खाजा खाये हो और आपको भी पिपरा का खाजा ऐसा लगा की बस खाये -जा वाली फीलिंग .......😋😋तो हमें कमेंट जरुर करे !